फेसिलिटेशन और सिखने की यात्रा



जब हम सीखने की सीढ़ियाँ देखें तो ज्ञान सबसे नीचे है और वो वाकई सब के पास आजकल काफी होता है, लेकिन कुछ पायदान ऊपर होता है कि कैसे आप उसे खुद में शामिल कर लेते हो और फिर उसे एप्लाई कर सको या उसकी समझ से कुछ नया बना सको|


योगेश (गेम चेंजर्स - संस्थापक) द्वारा संचालित फेसिलिटेशन की 50 घंटों की मैराथन एक प्रोग्राम के तौर पर ना केवल अनुपमेय और अद्भुत है बल्कि एक साधना की तरह है| यह एक ऐसी साधना है जिसमें बाहर और भीतर दोनों और से एक यात्रा चलती है | एक यात्रा है जिसमें सेशन है, बाते हैं, खेल है कुछ सिद्धांत हैं और आपके साथ है कुछ बेहतरीन साथी, वहीं दूसरी और ये अंदरूनी बदलाव है |


यह मैराथन एक ऐसा आईना है जो एक फेसिलिटेटर को उसकी कमजोरियाँ उतनी ही खूबसूरती से बताता है जितनी खूबसूरती से ताकत| गजब तो यह है कि ना केवल आप देख पाते हो बल्कि अपने बाजुओं में वो मसल भी बनाते हो कि कैसे बेहतर को और बेहतरी से उपयोग किया जाये और बाकी जगह जहाँ संभावना है उसे कैसे पूरा किया जाये|


बहरहाल, इस मैराथन ने विभिन्न सिद्धांतों को अपने जेहन में उतार देने का और उन्हें प्रयोग करने का एक अनूठा अवसर दिया| दो तरीके से सीधे तौर पर मुझे लगता है एक तो कैसे हम जो भी  फेसिलिटेशन कर रहे हैं उसे और गहरा समझ सकें और बेहतर कर सकें, दूसरा दिलचस्प ये लगा कि खुद में क्या बदलाव लाया, जब कोई दूसरा फेसिलिटेट कर रहा हो, ताकि हम एक बेहद बढ़िया ढंग से चीज़ों को एक प्रतिभागी के तौर पर भी समझ सकें|


लगातार 15 शनिवार और रविवार तीन घंटे, मुड़कर देखता हूँ तो लगता है कि अभी तो यात्रा शुरू हुई थी और पता ही नहीं चला कितना दूर आ गए! खुद को देखता हूँ तो लगता है बहुत सफर कर लिया और एक तरफ लगता है कि अभी सफर शुरू हुआ है; अभी तक तो एक लंबे सफर की तैयारी कर रहे थे | ये 50 घंटे एक लंबे और गहरे सफर पर जाने की तैयारी भर हैं|


कितनी बार हमें इस बात कि जरूरत महसूस होती है कि एक फेसिलेटेटर के तौर पर हर चीज़ में आमंत्रण हो, कैसे उन लोगों को शामिल किया जाये या आमतौर पर हम बिना आमंत्रण के ऑफर कर देते है| हमारे दिमाग में एक विशेष आउटपुट चल रहा होता है और अगर उस और नहीं जा रहे हो तो हम कितने सहज होते है? या उस वक़्त हम क्या महसूस कर रहें होते है? फेसिलिटेशन की इस साधना में ये समझ आता है कि कैसे सहजता से इस बात को स्वीकार कर पाएं और वो बेचनी ना पैदा हो | हमारा ऑफर कई बार चाहे जितना भी बढ़िया, सुलभ और वक़्त के हिसाब से योग्य क्यों ना हो कई बार वह उस तरह से नहीं जाता कि सामने वाला उसे स्वीकार करें| आमंत्रण, दो अलग अलग लोगों कि दूरी को मिटा कर एक कर देता है और इस तरह के माहौल में लोगों को ऐसा नहीं लगता कि उनकी आवाज नहीं है या उनके कंसर्न का कोई मौल नहीं हैं|


मैं इस बात को महसूस कर पाया कि आपका बहुत ज्यादा आगे होना जरूरी नहीं है बल्कि जरूरी है कि कैसे आप ऐसा माहौल बना पाएँ जहां आपके बिना बातें हो रही है और आप कैसे लोगों की बातों को एक सहज और आधारभूत रास्ता दे सकते हैं| एक ऐसा माहौल जो पूरी तरह से लोगों को सुरक्षित लगे ताकि उन्हें डर ना हो कि उनकी किसी बात को अलग तरीके से लिया जाएगा, उन्हें एक मानव के तौर पर विभिन्न लेंसों से मापा नहीं जाएगा और उनकी बातों को भी उतनी ही शालीनता से सुना जाएगा जितना दूसरों की|


फेसिलिटेशन एक ऐसा समुद्र है जिसके किनारों पर मजे करने के लिए एक अच्छा गोताख़ोर होना चाहे जरूरी नहीं हो लेकिन उसमें तैरने के लिए और उस दायित्व को प्रभावी तरीके से निर्वाह करने के लिए एक मंजा हुआ खिलाड़ी होना जरूरी है; साथ ही इस बात के मोह से परे होना कि हमारा काम लोगों को प्रभावित करने का है या उन्हें ये बताने का कि क्या सही है क्या गलत! एक मंजा हुआ खिलाड़ी कभी अपनी बात अपने मुँह से नहीं कहता, वह अपनी बात लोगों के बीच इस ढंग से कहता है कि लोगों को लगता है कि यह तो उनकी बात है|


(गेम चेंजर द्वारा आयोजित वर्कशॉप पर हमारे टीम मेंबर नागेश्वर के अनुभव और विचार)

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