Reflection of Jyoti_Aaina Dekho 2.0



आईना देखो प्रोग्राम में आकर मैं खुद को एक अलग चश्मे से देखने लगी हूँ। इस प्रोग्राम ने मुझे जीने का तरीका या कला नहीं, बल्कि जीना सिखाया है। "तुम क्या हो?" ये प्रश्न पहले मुझमें गुस्सा पैदा करने की वजह बनता था, वही प्रश्न आज मुझमें सकारात्मक ऊर्जा भर रहा है।

आईना दिखाना मुहावरे का मतलब भी मैं नकारात्मक तौर पर ही समझती थी। इस प्रोग्राम में मुझे आईना दिखाया गया लेकिन मुझमें किसी भी तरह की ग्लानि या नकारात्मकता नहीं भरी गयी, बल्कि मुझे मेरी भावनाओं और क्रियाओं के लिए जागरूक किया गया है। इस प्रोग्राम ने खुद की आवाज सुनाई है, साथ ही मुझमें आत्मविश्वास के साथ, लोगों के अंदर के प्रेम से भी मिलवाया।

मैं लोगो पर भरोसा करना चाहती थी लेकिन कर नहीं पा रही थी एक अविश्वास की धुंध में घुम रही थी और जिन लोगों से जुड़ती उनके साथ रहकर उन्हें जीने से पहले मुझे उन रिश्तों को खोने का डर सताने लगता था, डर में जीते-जीते मैं खुद के एहसासों से ज्यादा दुसरों की परवाह करने लगी थी. इससे मैं खुद को न सिर्फ परेशान रखती बल्कि जिंदगी को जंग समझने लगी थी। मुझे लगता था कि मुझे कोई सुनना नहीं चाहता लेकिन मैं खुद भी कहाँ खुद की सुनती थी! आईंना देखो ने मुझे सुना और खुद को भी सुनने के लिए खुद की आवाज को सुनाया।

पहले दिन का प्रश्न कि आपकी आपके लिए क्या जिम्मेदारी है? इस प्रश्न को आईना देखो ने किया और आईना देखो ने काफी हद तक इस जवाब तक पहुँचाया भी। लोगों को समझना उनके लिए अपनी भावनाओं को समझकर अपने अनुसार प्रतिक्रिया देना। किसी भी वक्त अपने हाथ, दिमाग और दिल को संतुलित करने की क्षमता खुद के हाथ में है, इसे समझने में इस प्रोग्राम ने मदद की।

आईना देखो से आने के बाद, मैं खुद को किसी भी नियम, भावनाओं और शब्दों में बंधने से पहले खुद की और दूसरे दोनों की आवश्यकता और भावनाओं का हिसाब लगाती हूँ। ज्यादातर चीज़ों में भूत और भविष्य से ज्यादा वर्तमान देखने लगी हूँ। आईना देखो के शेयरिंग सर्कल्स ने मुझे लोगों के बीच रहना सिखाया। मैं लोगो के बीच खुद की तरह सोचती हूँ। शेयरिंग सर्कल्स में अभिव्यक्ति के अवसर ने मुझे मेरे विचारों को समझने में मदद की है। मैं नो लिमिट चाइल्ड की थ्योरी से प्रोत्साहित हूँ । मैं अब किसी भी काम को करने में पूरी ऊर्जा लगाती हूँ।

एक सबसे बड़ा परिवर्तन ये है कि अब मैं पहले से किसी भी काम का परिणाम तय नहीं करती हूँ। ये परिवर्तन अब मुझे काफी हद तक कम दुखी करता है क्योंकि कई बार हम परिस्थितियों को उससे कई गुणा बड़ा, सिर्फ सोचने में बना लेते है।

एक लाइन जो बेहद खूबसूरती के साथ शेयरिंग सर्कल्स में रखी गई उसने मुझे काफी प्रभावित किया कि, "टॉर्च ले कर मंजिल देखोगे तो कभी नहीं दिखेगी, चलेंगे तो मंजिल तक पहुँच जाएंगे।"

इस प्रोग्राम में, मैं अपने जिंदगी के सबसे बड़े सच से मिली हूँ. मैंने खुद से क्या किसी से भी प्रश्न ही करना कम कर दिया है, और सही सवालों को पूछने की कोशिश करने लगी हूँ. हर चीज को कुछ वजहों से बस स्वीकार करने लगी हूँ। जिस माहौल में टीम और बाकि साथियों ने वक़्त बिताया उससे प्रेरित होकर, मैं खुद की वास्तिवकता को अब खोने से बचाती हूँ मैं जैसी हूँ अब मैं वैसी ही प्रतिक्रिया करती हूँ। मैं खुद पर भरोसा करना सीख रही हूँ।

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